Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती



अमराई सुभद्रा कुमारी चौहान

[१]
उस अमराई में सावन के लगते ही झूला पड़ जाता और विजयादशमी तक पड़ा रहता। शाम-सुबह तो बालक-बालिकाएँ और रात में अधिकतर युवतियाँ उस झूले की शोभा बढ़ातीं। यह उन दिनों की बात है जब सत्याग्रह आन्दोलन अपने पूर्ण विकास पर था। सारे भारतवर्ष में समराग्नि धधक रही थी। दमन का चक्र अपने पूर्ण वेग से चल रहा था। अखबारों में लाठी- चार्ज, गोली-काण्ड, गिरफ्तारी और सजा की धूम के अतिरिक्त और कुछ रहता ही न था। इस गांव में भी सरकार के दमन का चक्र चल चुका था। कांग्रेस के सभापति और मंत्री पकड़ कर जेल में बन्द कर दिए गए थे ।

इस दिन राखी थी । बहनें अपने भाईयों को सदा इस अमराई में ही राखी बांधा करती थीं। यहाँ सब लोग एकत्रित होकर त्योहार मनाया करते थे। बहने भाईयों को पहिले कुछ खिलातीं, माला पहिनातीं, हाथ में नारियल देतीं और तिलक लगा कर हाथ में राखी बांधते हुए कहतीं, "भाई इस राखी की लाज रखना लड़ाई के मैदान में कभी पीठ न दिखाना।"

एक तरफ़ तो राखी का चित्ताकर्षक दृश्य था। दूसरी ओर छोटे छोटे बच्चे और बच्चियाँ झूले पर झूल रहे थे। इनके सुकुमार हृदयों में भी देश-प्रेम के नन्‍हें नन्‍हें पौधे प्रस्फुटित हो रहे थे। बहादुरी के साथ देश के हित के लिए फ़ांसी से लटक जाने में वे भी शायद गौरव समझते थे। पहिले तो लड़कियाँ कजली गा रहीं थी। एकाएक एक छोटा बालक गा उठा-
"झंडा ऊंचा रहे हमारा"
फिर क्या था सब बच्चे कजली-बजली तो गए भूल, और लगे चिल्लाने,
“झंडा ऊंचा रहे हमारा”

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